Thursday, 26 April 2018
Wednesday, 25 April 2018
दूज का उत्सव - श्री यमुना जी धर्मराज की जय

श्री यमुना जी धर्मराज की जय
विश्व का एक मात्र भाई-बहन का प्राचीन मंदिर श्री यमुना जी धर्मराज का मंदिर है। जो कि मथुरा में विश्राम घाट पर यमुना के किनारे पर स्थित है। बताते है कि आज से हजारो वर्षो पूर्व से यहाँ पर अपनी बहन यमुना से मिलने यमराज आये हैं यहाँ अभी हम इनको यमराज कह कर सम्बोधन कर रहे हैं। बाद मैं यही धर्मराज के रूप जानें जाते हैं। ये दोनों सूर्य नारायण के जुड़मा सन्तान (पुत्र-पुत्री) हैं। इनकी माता का नाम संध्या हैं बताया जाता हैं की संध्या पर अपने पति का नारायण का तेज़ सहन ना कर पाने पर घोड़ी के रूप मैं भाग जाती हैं बाद मैं जब आती हैं छाया के रूप मैं हो जाती हैं तब उनसे शनिदेव महाराज का जन्म होता हैं। दोनों पुत्रो को नारायण ने दंड देने का कार्य सौपा है शनिदेव महाराज ढैया-साढ़े साती के रूप मैं आपना न्याय करते हैं और दण्ड देते हैं मरण के उपरांत हमारी आत्मा को दण्ड देने का कार्य यमराज करते हैं। यमराज जो की बहुत भयानक नाम हैं और आत्मा को भयानक भयानक यातना देने का कार्य दिया जाता हैं। यमराज ही चित्र गुप्त के खाता देखने पर हमारा कर्मो के हिसाब से स्वर्ग या नर्क का मार्ग कर्म अनुसार सुनाते हैं। यमराज जी के यमलोक का वृतांत गरुण पुराण मैं दर्शाया गया हैं। बताते हैं आज से वर्षो पूर्व विश्रामघाट-मथुरा मैं जब यमराज जी कार्तिक मॉस मैं शुक्ल पक्ष मैं दीवाली के बाद दूज आती हैं उस दिन यहाँ पर आते हैं तो यमुना चतुर्भुज स्वरुप मैं प्रगट होती हैं एक हाथ मैं भोजन थाली और दूसरे हाथ मैं कमल का फूल हैं और एक हाथ से अपने भाई के तिलक और अन्य चतुर्थ भुजा से वरदान प्राप्त कर रही हैं ,यमराज अपनी बहिन यमुना जी के आतिथ्य से प्रसन्न होते है और वर माँगने को कहते है तब यमना जी कहती हे की मै श्री कृष्ण की पटरानी हूँ मेरे यहाँ किसी वस्तु की कमी नहीं है अगर आप को कुछ देना है तो ये वर दो की जो भी मेरे अंदर स्नान करेगा वो तेरे लोक ना जाकर सीधा स्वर्ग जाए नर्क न जाए यमराज अपनी बहन से कहते है कि बहन तुम ने तो मेरा सर्वस माँग लिया आप तो यमनोत्री से बह रही हो संगम मे एवं समुंदर में मील रही हो जाने अनजाने कोई भी स्नान करेगा तो मेरा लोक सुना हो जाएगा बहन तूने तो मेरा सर्वस माँग लिया, आज के दिन अर्थात भाईदोज वाले दिन जो भी भाई बहिन तुम्हारे अंदर स्नान करेगा वो नर्क न जा कर सीधा स्वर्ग जाएगा, तभी से यहाँ देश विदेश से लाखो श्रदालु विश्रामघाट पर आ कर सभी भाई बहिन हाथ पकड़ कर स्नान करेंगे वो सीधे स्वर्ग जायगे। नर्क नहीं जाएगे तभी से ये कहते है की यमुना मैया ने अपने भाई यमराज से धर्म का कार्य करवाया तभी से यमराज जी का नाम धर्मराज पड़ गया।
इसी कथा से प्रेरित होकर ब्रज वासियों में एक लोकगीत भी प्रचलित हैं।
इसी धारणा के अनुसार तभी से भाई दूज का उत्सव बड़ी धूम धाम से बनाया जाता हैं।इसी कथा से प्रेरित होकर ब्रज वासियों में एक लोकगीत भी प्रचलित हैं।
यमराज तैने जीत लियो जय जय यमुना मईया।
श्री यमुना जी धर्मराज की जय
कर्म की पूजा संसार मे होती है
।। जय श्री जी की ।।
प्रिय भक्तो ।।
श्री श्यामसुंदर श्री यमुने महारानी की जय जय जय हो..
भगवान सब की सुनता है। "कर्म" की पूजा संसार मे होती है ।।श्री।। कृपा एवं गुरु कृपा से सब कार्य पूरे होते है। इस समस्त ब्रहम्मांड में समस्त लोक परलोक जीव चराचर समस्त प्रकार का पालन-पोषण माँ ।।श्री।। भगवती पराम्बा जगत जननी करती हैं।
जय श्री जी की
Tuesday, 24 April 2018
श्री ललिताम्वाSर्चा पद्धति
श्री ललिताम्वाSर्चा
पद्धति
याग मंदिर प्रवेश:
४ भं भद्रकाल्यौ नमः ( दक्षिणे )। ४ भं भैरवाय नमः ( वामे )। ४ लं लंबोदराय नमः ( ऊर्ध्वे )।
तत्त्वाचमनम्
४ ऐं ५ आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा। ४ क्लीं ६ विधातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा। ४ सौ: ४ शिवतत्त्वं शोधयामि नमः
स्वाहा। ४ ऎंक्लींसौ: १५ सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
संकल्प
मुलेन प्राणानायम्य।
देश कालौ संकीत्र्य।
मम श्री ललिता महात्रिपुर
सुंदरी-प्रीत्यर्थ यथासंभव
द्रव्यै: यथाशक्ति सपर्याक्रमं निर्वर्तयिष्ये। तेन परमेश्वरं प्रीणयामि। आत्मानं अलंकृत्य ताम्बूलेन सुरभिल-वदन: सन प्रमुदित चित्त: शिवोहं इति भावयेत। च पूजयेत।
पात्रस्थापनम्
स्ववामे त्रिकोण षट्कोण वृत चतुरस्त्रात्मकं मण्डलं विधाय ऐं क्लीं सौ: इति त्रिकोण मध्यं पृथग्बीजै: कोणत्रयं षडंगै: ( अनुलोम-विलोम बालया (पेज-8)
षटकोंणान सम्पूज्य फडिति पृक्षाल्य कलशाधारं
( सामान्यार्ध-पात्र की स्थापना के क्रम में सामान्यार्ध-पात्रं तथा विशेषार्ध-पात्र की स्थापना के क्रम में विशेषार्धपात्रं )
संस्थाप्य----
आधार पूजा
ॐ रां रीं रूं रमल वरयूं वह्रिमंडलाय
धर्मप्रद दशकलात्मने ऐं कलशाधाराय नमः ( सामान्यार्ध-पात्र के क्रम में सामान्यार्ध-पात्रायनमः तथा विशेषार्ध-पात्र के क्रम में विशेषार्ध-पात्राय नमः कहना चाहिए )
इत्यधार्ं सम्पूज्य तदुपरि प्रादक्षिण्याद् दशाग्नेयी
कला: अचंयेत।
४ यं धूम्रार्चिष्कला श्री पादुकां पूजयामि।
४ रं ऊष्मा कला श्री पादुकां पूजयामि।
४ लं ज्वलिनी कला श्री पादुकां पूजयामि।
४ वं ज्वालिनी कला श्री पादुकां पूजयामि।
४ शं विस्फुलिंगिनी कला श्री पादुकां पूजयामि।
४ षं सुश्री कला श्री पादुकां पूजयामि।
४ सं सुरूपा कला श्री पादुकां पूजयामि।
४ हं कपिला कला श्री पादुकां पूजयामि।
४ लं हव्यवाहिनी कला श्री पादुकां पूजयामि।
४ क्षं कव्यवाहिनी कला श्री पादुकां पूजयामि।
पात्र पूजा
इति
सम्पूज्य तत्र अस्त्रायफट
इति पृक्षाल्य कलशं ( कलश पात्र स्थापना के बाद व्दितीय क्रम में सामन्यार्धपात्रं
-तदुपरान्त विशेषार्धपात्रं ) स्थापयेत। ॐ ह्रां हीं हूं हमलवरयूं ह सूर्यमण्डलाय वसुप्रद व्दादश कलात्मने क्लीं कलशाय नमः ( क्रम में सामान्यार्ध पात्राय नमः तथा विशेषार्धपात्राय नमः ) इति सम्पूज्य तत्र स्वाग्रादी
प्रादक्षिण्येन व्दादश सूर्यकला: अर्चयेत।
४ कं भं तपिनकला श्री पादुकां पूजयामि।
४ खं बं तापिनीकला श्री पादुकां पूजयामि।
४ गं फं धूम्राकला श्री
पादुकां पूजयामि।
४ घं पं मरीचीकला श्री पादुकां पूजयामि।
४ डं नं ज्वालिनीकलाश्री पादुकां
पूजयामि।
४ चं धं रुचिकला श्री पादुकां पूजयामि।
४ छं दं सुषुम्नाकला श्री पादुकां पूजयामि।
४ जं थं भोगदाकला श्री पादुकां पूजयामि।
४ झं तं विश्वाकला श्री पादुकां पूजयामि।
४ ा णं बोधनीकला श्री
पादुकां पूजयामि।
४ टं ढं धारिणीकला श्री पादुकां पूजयामि।
पेज-९
४ ठं डं क्षमाकला श्री पादुकां पूजयामि।
पीयूषरस-यजन
इति संपूज्य तत्र मातृकामूलं च जपन शुध्दोदकेनापूर्य ---
ओं व्रह्माण्डोदर
संभूतं अशेष रस सम्भृतम्।
आपूरितं महापात्रं पीपूशरसमावह।।
,
इति जपित्वा सां सीं सूं समलवरयूं सं सोममण्डलाय
कामप्रद षोडशकलात्मने सौं: कलशामृतायनमः।
(सामान्यार्धामृतायनमः " विशेषार्धामृतायनमः
वा ) इति संपूज्य अमृतादि षोडश सोमकलाः यजेत—
४ अं अमृताकला श्री पादुकां पूज्यामि नमः।
४ आं मानदाकला श्री पादुकां पूज्यामि नमः।
४ इं पूसाकला श्री पादुकां पूज्यामि नमः।
४ ईं तुष्टिकला श्री पादुकां पूज्यामि नमः।
४ उं पुष्टिकला श्री पादुकां पूज्यामि नमः।
४ ऊं रतिकला श्री पादुकां पूज्यामि नमः।
४ ॠं घृतिकला श्री पादुकां पूज्यामि नमः।
४ ऋृं शशिनीकला
श्री पादुकां पूज्यामि नमः।
४ ल्रं चंद्रिका कला श्री पादुकां पूज्यामि नमः।
४ ॡं कांतिकला श्री पादुकां पूज्यामि नमः।
४ एं ज्योत्स्ना कला श्री पादुकां पूज्यामि।
४ ऐं श्री कला श्री पादुकां पूज्यामि।
४ ओं प्रीति कला श्री पादुकां पूज्यामि।
४ औें अंगदा अं पूर्णा कला श्री पादुकां पूज्यामि।
४ अः पूर्णामृता कला श्री पादुकां पूज्यामि।
इति सम्पूज्य---
तीर्थावाहन
गंगे च यमुने चैंव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेs ि स्मन्सि िन्नधिंकुरु।।
आनन्द मिथुन
पूजन
इति तीर्थान्यावाहा ह
स क्ष म ल वरयूं आनन्द भैरवाय वौषट्र सह क्षमलवरयीं
सुधा देव्यै वौष
Subscribe to:
Posts (Atom)