Wednesday, 10 January 2018

श्री प्रभु प्रार्थना - प्रत्याकर्षण सूत्र

श्री प्रभु प्रार्थना - 
प्रत्याकर्षण सूत्र दैनिक वयस्ततम जनजीवन में यथाशक्ति - श्र धा - भक्ति - निश्ठापूर्ण अपने श्रीईस्टदेव एवमेव श्रीदेवी शक्ति तत्व की उपसना प्राथना नियमित करना चाहिए | प्रति सदग्रहस्थ्य हेतु यह एक अनुपम सार्थक - फलद - पु सन्मार्ग है | इस प्राथना शक्तिजनित प्रभामण्डल के विकसित होने पर जीवनीय विषम विबाधा - समस्या का निवारण एवं विशेषकर मूल पृकृति जनित " अहम तत्व भाव " विकार का शमन -निराकरण समाधान बनना भी सर्वधर्म सम्मत शा सूत्र है | इस युग के महामना महात्मा गांधी जी द्वारा भी किसी भी प्रायोजन - आयोजन के पृथम " प्राथॅना तत्व " का समावेश किया जाता रहा है तथापि धर्मशास्त्रीय उद्द्घोषणा भी यही है कि "देवो भूत्वा देवं यजेत " भावेन लभते सर्व भावेन देव दर्शनम | भावेन परम ज्ञानं तस्माद भावाअवलम्वनम | | अर्थात अपने इस्टदेव का इस्रोत पाठ जप - पूजन -ध्यान -कीर्तन -भजन - प्राथना -अनुष्ठान आदि कर्म सर्वदा सात्विक पवित्र अंत ; करण एवं निष्काम मनोभावना से सम्पन्न करना चहिये एवं पंच भौतिक देहधारी मानव - मनुष्य गृहजनित विबाधा - आधि व्याधि से भी मुक्त होकर शाश्वत सुगम शांत गतिक जीवनक्रम का अनुभव सहज भाविक प्राप्त कर सकता है | इस बिषयक शास्त्रीय सूत्र -रोगार्तोमुच्यते रोगादूब--- मुच्येत बन्धनात | भयान्मुच्येत भीतस्तु मुच्येतापत्र आपदः | | प्राथना हमारे आंतरिक परिबर्तनो में महत्वपूर्ण भूमिका बनाती है जब भी हम प्रथना करते है तो हमारे कलुषित विचार तिरोहित हो जाते है तथा इससे हमारा मन शरीर स्वस्थय पवित्र प्रफुल्लित होता है एवं तथ्य सार यह भी है कि प्रार्थना एक प्रिक्रिया है - आत्मा को परमात्मा के पथ का राही बनने का तथा इस सम्पूर्ण ब्रहमांड के रचियेता परिपालक सर्वेश्र्वर की परम शक्ति सत्ता संचेतिना समाधार विधायक तत्व् का सुगम सन्मार्ग तदर्थ ही शास्त्रिय वचनामृत सूत्र -करोति सततं यो हि तन्नामगुणकीर्तनम | कार्ल मॄत्यु स जयति जन्म रोगं जऱा भयम | | नाअहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च | मध्यक्ता यत्र गायन्ति तित्सठामि त;;;;; नारद | | ओम अपवित्र: पवित्रो वा सर्वाअवस्थां गतोअपि वा | य: िसमरेत पुण्डरीकछम स बाह्राभयँतर: शुचि: | | अस्ट ा दस पुराडेसु व्यासस्य वचनद्वयम | परोपकार: पुण्याय पापय पर पीडनम | | उत्तम सद्विचार रहें; करे मनुष्य सतकर्म | जो चाहे सो प्राप्त करें ; संकलपित मन का धर्म | | जाना सब को एक दिन तज धन औ परिवार आनन्द सूत्र ऐश्वर्य - मद ये मिथ्या अधिकार | | * क्रडवन्तो विश्वमार्यम जीवेम शरद शतम *** | |














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