Saturday, 6 January 2018

श्री धर्मराज कथा सम्पूर्ण

एक समय की बात हैं की नैमिषारण्य मैं सहस्तों -शौनक आदि ऋषि -गण परम श्रद्धा के साथ पुराणो के मर्मज्ञ सूतजी महाराज से पूछने लगे भगवन! हम आपके मुखारविंद से धर्मराजजी की कथा, उसका विधान तथा माहात्म्य सुनना चाहते हैं, सो आप हमें कृपा करके यही सुनाइए | सूत जी बोले - हे ऋषियों! आप लोगो ने मुझे से मनुस्यो के कल्याण कामना से मुझसे ये पूछा हैं - अतः आज मैं आप लोगो को धर्मराज की कथा सुनाता हूँ सारे तीर्थ तथा व्रत करने से तथा नाना प्रकार का दान हो देने वाले मनुष्य भी जिनके उद्द्यापन को किये बिना सुख के भागी नहीं हो सकते इस विषय मैं आप लगो को इस लोक मैं सुख और आगे स्वर्ग की प्राप्ति के लिए धमर्राजजी की श्रेष्ठ कथा कहुगा आप लोग विश्वास रख कर श्रावण करे | पूर्व काल की बात हैं की राजा बब्रुवाहन महोदय पुर मैं राज्य करता था | वह राजा बड़ा धर्मात्मा, दयालू तथा गौ, ब्रामण और भक्त पूजक था | उसके राज्य मैं हरिदास विष्णु सेवक बड़ा तेजस्वी था, तदानुसार उसकी पत्नी भी बहुत सुशील और धर्मवती थी जिसका नाम गुणवती था | हरिदास विष्णु सेवक बड़ा तपस्वी था | तदुसार उसकी पत्नी श्री भगवान की भक्त और पतिव्रता थी उसने प्राय सभी प्रसिद्द देवताओ के व्रत किये परन्तु धर्मराज की याने धर्मराज नाम से प्रभु की सेवा कभी नहीं की वह गणेश के चन्द्रमा के हर तालिका आदि देवियो के राम-कृष्ण जन्म जन्मष्ट्मी, महाशिवरात्रि आदि शिव जी के सभी व्रत किया करती थी | बड़ी श्रद्धा से एकादशी का व्रत करती हुई यथा शक्ति दान भी करती थी रहती थी और अतिथि सेवा से कभी बिमुख नहीं रही इस प्रकार धर्मपरायण यह वृद्ध अवस्था मैं मृत्यु को प्राप्त हुई तो धर्म चरण के प्रभाव से यम दूत उसे आदर पूर्वक धर्मराज के पुर को ले गए | दक्षिण दिशा में पृथ्वी से कुछ ऊपर अंतरिक्ष मैं धर्मराज का बड़ा भारी नगर हैं | जो की पापी लोगो को भयकारी हैं धर्मराज का पुर एक हजार योजन का हैं | वह चौकोर हैं तथा उसके चार द्धार हैं तथा वह नाना प्रकार के रत्नों से सोभायमान काई मनुस्य जो पुण्य भोगने को गए हैं | निवास कर रहे हैं | स्थान स्थान पर गीत सुनाई देर हैं और बजे बज रहे हैं | उस नगर के सात कोट हैं | उसके बीच मैं महासुन्दर धर्मराज जी का मंदिर हैं वह रत्नो से बना हुआ हैं और अग्नि बिजली बाल सूर्य के समान चमक रहा हैं उसके दरवाजो की पेडिया स्पटिक मड़ी की हैं, हीरो की कड़ियों से आँगन चमक रहा हैं | उसके मध्य मैं अनुपम सुन्दर सिंगासन पर धर्मराज भगवान विराजमान हैं | उनके पास चित्र गुप्तजी का स्थान हैं जो की मृत प्राणियों के पाप का लेखा भगवान धर्मराज को सुनाया करते हैं यमराज के दूत गुणवती को बहा ले गए उनको देख कर वह भयभीत होकर कापने लगी निचे मुख किये खड़ी गयी चित्र गुप्तजी ने उनके पूर्व जनम के किये हुए पाप पुण्य का लेखा जोखा पड़ कर सुनाया धर्मराज जी उस गुणवती की हरिहर आदि सब देवो मैं तथा अपने पति मैं भक्ति देखकर प्रसन्न हुए पर कुछ उदासी भी उनके मुख मंडल पर झलकती हुई गुणवती को दिखाई दी धर्मराज जी को उदास देख कर गुणवती ने निवेदन किया की हे प्रभु मेरी समझ मैं कोई दुस्कृत्य नहीं किया फिर भी आप उदास क्यों हैं इसका कारण बताइये धर्मराज जी ने कहा हे देवी तुमने व्रत आदि से सब देवो को संतुस्ट किया हैं | परन्तु मेरे नाम से तुमने कुछ भी दान पुण्य नहीं किया हैं यह सुनकर गुणवती ने कहा हे भगवान मेरा अपराध छमा करे मैं आप की उपासना नहीं जानती थी अब आप ही कृपया करके उपाय बताइये जिससे मनुस्य आप के प्रीति के पात्र बन सके यदि मैं आपके भक्ति मार्ग को आपके मुख्य से श्रवण कर वापस मृत्यु लोक मैं जा सकू तो आप को संतुस्ट करने का उपाए करुँगी धर्मराज ने कहा सूर्य भगवान के उत्तरायण मैं जाते ही जो महापुण्य वती मकर संक्राति आती हैं उस दिन से मेरी पूजा शुरू करनी चाहिए इस प्रकार साल भर मेरी कथा सुने और मेरी पूजा करे इसमें कभी नागा नहीं करे आपातकाल आने पर भी मेरे धर्म के इन दस अंगो का पालन करता रहे घृत यथा लाभ संतोष, छमा नियम द्वारा मन को वश मैं करना किसी की वस्तु को नहीं चुराना मन से पर स्त्रियों या पुरुषो से वचना यानि मन की शुध्दि और शारिरिक शुध्दि इन्द्रियों के वस में रहना बुध्दि की पवित्रिता यानि मन मैं बुरे विचार ना आने देना शास्त्र विद्या का स्वाध्याय यानि पाठ पूजा कथा श्रवण या व्रत रखना और तदा अनुसार दान पुण्य करना सत्य बोलना सत्यता का ही व्यव्हार और क्रोध ना करना ये दस धर्म के लक्छण हैं और मेरी इस कथा को नियम से सदा सुनता रहे पड़ता रहे और यथा शक्ति दान पुण्य तथा परोपकार करता रहे जब साल भर बाद फिर मकर संक्रांति आवे तब उद्द्यापन कर दे सोने की या असमर्थ हो तो चांदी की मूर्ति बनबामे किसी विद्वान ब्राहमण के द्वारा पूजन हवन आदि करे मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर पंचामृत से स्नान करा षोडशोपचार से उसकी पूजा करे साथ मैं चित्रगुप्त जी की भी पूजा करे व् सफ़ेद काले तिलो के लड्डू का भोग लगावे हमारी पूर्ण पुष्टि के लिए ब्राहमण को भी भोजन करावे और बॉस की छावरी मैं सवा पांच सेर धान्य जवार जो मुक्ता तुल्य मानी है, किसी मंदिर या ब्राहमण को भेट करें स्वर्ग मैं चढ़ने के लिए सोने या चांदी की नसेनी धर्मराज मंदिर मैं दान करे इसके साथ ही सुन्दर बानी हुई सईया मुलायम गद्दा तथा रजाई और तकिया हो इसके अलावा कम्वल पादुकाएं लकड़ी या डण्डा लोटा डोल पांच कपडे भी धर्मराज के निमित और यदि समर्थ हो तोह स्वेत,काली या लाल गाय चित्रगुप्त के निमित धर्मराज मंदिर मैं दान करना चाहिए | ये सभी वस्तुए सर्व सादारण के लिए हैं | धनवान व्यक्ति और भी दान करे तोह उत्तम हैं गुणवती ने धर्मराज जी से प्रार्थना की हे प्रभु यदि ऐसी बात हैं यम दूतों से मुझे छुड़ा कर फिर संसार मैं भेजिए जिससे मैं आपके कथा का प्रचार कर सकू ज्यो ही उसकी प्रार्थना पर भगवान धर्मराज जी ने गुणवती को भू लोक पर वापस जाने स्वीकृति दे दी उसी समय उसके मृत शरीर मैं पुनः प्राणो का संचार हो गया और उसके पुत्र कहने लगे हमारी माता जी भी जीवित गयी इसके बाद गुणवती ने अपने पति और पुत्र आदि को सब बाते बताई जो धर्मराज जी ने मनुस्यो के कल्याण के लिए कही थी और गुणवती ने मकर सक्रांति से विधि वत उसने धर्मराज जी की परितदिन पूजा और कथा आरंभ कर दी और स्वर्ग जाने के लिए दान पुण्य कर्म आदि भी आरम्भ करने लगी इस प्रकार गुणवती साल भर कथा सुनकर धर्म के दस अंगो का पालन कर जब पुनः मृत्यु उपरांत वापस स्वर्ग मैं देवताओ ने गुणवती का आदर किया | और सदा स्वगीर्य भोगो को भोगती रही सूत महाराज ने सनकादिक ऋषियो से कहा हे मुनियो जिस घर मैं स्त्री या पुरुष इस धर्मराज भगवान की व्रत कथा को श्रध्दा पड़े तो वो दुखो से मुक्त हो जाते हैं तथा सम्पूर्ण दान देने से पापमुक्त हो जाते हैं | इसमें कोई संसय की बात नहीं हैं की मृत्यु काल मैं यम दूत जो लेने आते हैं वह भी उसको आदर पूर्वक ले जाते हैं | और धर्मराज भी उसे सदा सुखी रखते है यदि उन मनुष्य के कुछ पाप बाकी हो तो शीघ्र ही पापनाश का उपाय बताकर शीघ्र ही पाप मुक्त कराने मैं सहायक बनजाते हैं गरुण पुराण आदि मैं लिखा हैं पापी लोगो को यम दूत भयानक यातनाये देते हुए ले जाते हैं परन्तु धर्मराज जी की कथा व् दान पुण्य धर्म राज मंदिर मैं करते हैं वह मनुस्य यमपूरी मैं भी कष्ट नहीं पाते हैं वह मनुस्य शीघ्र ही स्वर्ग तथा मोक्ष्य को प्राप्त होते हैं | 
इति श्री सौरपुराणे वैवस्वत खंडे 
श्री धर्मराज कथा सम्पूर्ण

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