पंचज्ञानेन्द्रीय
१ -नेत्र २- श्रोत्र (कर्ण) ३-नासिका (घ्राण) ४-त्वक ( त्वचा स्पर्श ) ५ -रशना( जिव्हा ) - ये पांच ज्ञानेन्द्रीय संज्ञा से मांन्य |
पंचकर्मेन्द्रिय १ -वाक् २ -हस्त ३ -पाद ४ -उपस्थ (लिंग) ५ -गुदा ये पांच कर्मेन्द्रीय संज्ञा से मान्य |
शरीस्थ षड्गग्ङ
१ -शिरः २ - हस्तवद्य १ -उदर (पेट) २ -पादव्दय ये शरीर के छ; अंग है | मनसू (कर्म विबोधक संज्ञा) मानव नर देह की सुरम्य क्रियाशक्ति एवं नित्य के जीवन गतिक्रम संचालन हेतु उपयुक्त मूल उपादेय है| नवग्रहजनित रश्मि प्रभामण्डल का प्रारूप इन विषयक पक्छ पर ही प्रभावशील बनता है|
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